मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

श्रावस्ती की कहानी

उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला जो वर्त्तमान मुख्यमंतरी मायावती जी की देन है जहा के लोग आज समस्त सुबिधाओ से विमुख होकर जीवकोपार्जन करने को मजबूर है । श्रावस्ती जिले की कहानी यह है की जिले में एक तो मानसून देर से आया तो धान की फसल बर्बाद हो गई , कुछ किसानो कर्ज लेकर या अपने बच्चो का पेट काटकर किसी तरह धान के फसल को पानी देकर बचाए रह गए तो जब मानसून आया तो ऐसे की बाढ आगई और बची खुची फसल भी चौपट हो गयी क्या होगा भारत के उन नागरिको का यह अभी तक पहेली बना हुआ है दुसरी तरफ़ बाढ़ के पानी ने सडको को पुरी तरह बर्बाद कर दिया है और जो नाममात्र की सड़के थी भी वो किसी काम की नही रह गयी है। ठण्ड की शुरुवात हो गयी है और लोगो के घरो में अनाज लगभग ख़तम होने को है और कुछ लोग तो एक टाइम खा रहे है खास तौर से हरिजन बस्तियों की कहानी सुनकर रोना आता है जबकि सरकार मायावती जी की है जो अपने को हरिजनों का ठेकेदार बताती है । और तो और जिले के मुख्यालय से सटे गावो की कहानी ऐसी है तो दूर दराज की क्या कहानी होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । मायावती जी सरकार पार्क और मुर्तिया बनवाने में इतना ब्यस्त हो गयी की जनता के भूख और प्यास का भी ख्याल न रहा ऐसे में कैसे जीवन यापन होगा श्रावस्ती के लोगो की यह प्रश्न अभी तक एक पहेली बना हुवा है । अब देखना यह होगा की आम लोगो की बात करने का दंभ भरने वाली कांग्रेस सरकार को इनका ख्याल आता है की नहीं ?. जरी रहेगा

शनिवार, 3 अक्टूबर 2009

आज का बाज़ार

बाज़ार का रूप बनते बनते कुछ ऐसा बन गया है की अब अगर कुछ खरीदना है तो सावधान हो जाईये हो सकता है बाज़ार से आप वो लेकर आए जिसे लेने की आपकी इच्छा नही थी लेकिन...............
जी हाँ पूंजी वादी देशो से आयातित बाज़ारवाद जहा उन देशो में सफलता पूर्वक फल फूल रहा है तथा अपने ग्राहकों को खुश रख रहा है वही हमारे बेचने की परिभाषा इसतरह बदल गई की अब चोरी करने पर उतारू है। दुकान के बहार बड़े बड़े शब्दों में लिखा है की ९०% ऑफ़ अन्दर जाए तो कुछ सडेसामानों का छोटा सा ढेर लगा है जिसपर ऑफ़ है बाकी की कीमत सुनते ही दिमाग की ऐसी की तैसी हो जाती है । ग्राहक देवता होता है शब्द हमारा होकर भी अब हमारा नही रहा इसका सही अर्थो में प्रयोग वो देश कर रहे है जिनसे हम बाजारवाद लेकर आए है । सही अर्थो में कहे तो अल्पलाभ लेने के लिए हम उनकी बुराई उठा लाये है और वो हमारी अच्छाई ले गए । अब बाज़ार में जो मीठे शब्द सुनाई देते है वो हमें ठगने के लिए होते है । और अगर आप बचना कहते है तो होसकता है दुकान वाले की गाली भी खानी पड़े। तो अब सावधान हो जाए। वरना लुटना होगा ।
क्या है इस बाजारवाद की अन्तिम विन्दु यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। इतना तो पक्का है इससे निपटना है तो आप मानवता दया छोड़कर और पूर्ण रूप से नशील बन कर बाज़ार में प्रवेश करे लेकिन क्या इससे समस्या का समाधान सम्भव है.........................या एक और समस्या का जन्म होगा।
जारी रहेगा .....................