बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

मायावी दौरा नौकरशाह चुस्त

श्रावस्ती, मुख्यमंत्री के प्रस्तावित दौरे के मद्देनजर बुधवार को मंडलायुक्त डॉ. गुरुदीप सिंह ने कलेक्ट्रेट सभा कक्ष में अंबेडकर गांवों के विकास कार्र्यो की समीक्षा की तथा जिला मुख्यालय पर स्थित सीएचसी भिनगा, कांशीराम शहरी आवास, कोतवाली, तहसील तथा ईदगाह तिराहे पर चल रहे इंटरलांकिग के निर्माण कार्यो का निरीक्षण किया। इस दौरान मिली खामियों पर मंडलायुक्त ने संबंधित अफसरों को कड़ी फटकार लगाते हुए मुख्यमंत्री के निरीक्षण के पहले कार्यो को पूरा करने तथा सुधार लाने के निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री मायावती का 11 फरवरी को श्रावस्ती में निरीक्षण प्रस्तावित है। इसी के मद्देनजर जिले का प्रशासनिक अमला अंबेडकर गांवों को चमकाने के लिए दिन रात जुटा हुआ है। विकास कार्यो तथा प्रशासनिक व्यवस्था की समीक्षा के लिए बुधवार को मंडलायुक्त श्री सिंह जिला मुख्यालय भिनगा पहुंचे और अधिकारियों की कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक कर अंबेडकर गांवों की समीक्षा की। सीएचसी भिनगा में निरीक्षण के दौरान मंडलायुक्त को तमाम खामियां मिली। जिसपर उन्होंने जिलाधिकारी अजय कुमार सिंह व सीएमओ एसके महराज को तत्काल अव्यवस्थाओं को सुधारने के निर्देश दिए। सीएमओ को उन्होंने फटकार लगाई। इसके बाद मंडलायुक्त ने तहसील तथा कोतवाली की स्थिति का भी जायजा लिया। नगर में सफाई व्यवस्था को लेकर मंडलायुक्त ने अधिशाषी अधिकारी को भी फटकारा। कांशीराम शहरी आवासों की स्थिति बदहाल पाई गई। जिसके लिए डीएम को सुधारने के निर्देश दिए। ईदगाह तिराहे को समय से इंटरलाकिंग पूरा कराने का निर्देश दिया। इस दौरान जिलाधिकारी अजय कुमार सिंह, पुलिस अधीक्षक डॉ. वीबी सिंह, अपर जिलाधिकारी राम नेवास, सीडीओ रघुनाथ शरण समेत सभी जिलास्तरीय अधिकारी मौजूद थे।

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

किसानों के सपने शिखर पर, संसाधन सिफर

श्रावस्ती मुख्यमंत्री मायावती केड्रीम प्रोजेक्ट में है, लेकिन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में मंडी नदारद है। जिससे जिले के किसानों के खेतों से बाजार दूर होता जा रहा है। यहां के किसानों के पसीने का मोल नहीं है। फिर भी किसान बिना संसाधन के रिकार्ड तोड़ आलू का उत्पादन कर कीर्तिमान बना रहे हैं। भले ही उनके सपने फलीभूत न हो पा रहे हों।
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित श्रावस्ती की अंतराष्ट्रीय महत्ता को देखते हुए मुख्यमंत्री मायावती ने वर्ष 1997 की 22 तारीख को जिले का गठन कर इसका मुख्यालय भिनगा बनाया। श्रावस्ती के विकास के लिए पुल, सड़कों का जाल बिछाने के लिए भिनगा के विधायक दद्दन मिश्र को राज्य मंत्री बनाया। किन्तु यहां के किसानों कोई पुरसाहाल नहीं है। जिले में संसाधन न होने के बाद भी आलू का उत्पादन साल दर साल बढ़ता जा रहा है। लेकिन यहां न तो मंडी है न ही कोल्ड स्टोरेज बनाया गया है। न ही इसकी कोई ऐसी योजना भी बनी है। लिहाजा तराई के आलू किसानों को दूसरे जिले पर निर्भर रहना पड़ता है। मंडी और कोल्ड स्टोरेज के अभाव में किसानों को आलू औने-पौने दामों पर बेचने को विवश होना पड़ता है। जिससे उनके पसीने की गाढ़ी कमाई माटी के मोल बिक जाता है। इस वर्ष जिले में 1810 हेक्टेअर क्षेत्रफल में आलू बोया गया है। 200 कुंतल प्रति हेक्टेअर के हिसाब से 36 हजार कुंतल आलू उत्पादन की संभावना जताई जा रही है। जबकि पिछले वर्ष 1775 हेक्टेअर क्षेत्रफल में आलू की फसल बोई गई थी। लगभग 33 हजार कुंतल आलू का उत्पादन हुआ था। परेवपुर के किसान अरुणेश प्रताप सिंह कहते हैं कि किसानों का हौसला तो है लेकिन संसाधन के अभाव में उनके सपने टूट रहे हैं। आलू पैदा करने के बाद किसान बेचने के लिए दर-दर भटकते रहते हैं। पूरे खैरी के किसान राम सूरत यादव ने बताया कि मंडी न होने से हांड़ तोड़ मेहनत करके पैदा की जाने वाली आलू को औने-पौने भाव में सब्जी मंडियों पर बेंच दिया जाता है। जिससे लागत भी नहीं निकल पाता है। इसी गांव की महिला किसान शांती देवी बताती है कि इस वर्ष तो पाला और कोहरा के कारण आलू का उत्पादन कुछ प्रभावित हुआ है। जिसे भी बेचने में काफी दिक्कतें आ रही हैं। केवलपुर के श्याम यादव कहते हैं कि जब किसानों का आलू पैदा होता है तो तीन सौ रुपये कुंतल बिकता है और जब उनकी जरुरत होती है तो 12 रुपये किलो खरीदना पड़ता है।
जिला उद्यान अधिकारी हरिहर प्रसाद कहते हैं कि मंडी और कोल्ड स्टोरेज न होने से आलू के किसानों को दिक्कतें उठानी पड़ती है। उनके उत्पादन पर असर पड़ता है। संसाधन न होने के कारण यहां आलू की खेती कराने के लिए कोई लक्ष्य भी विभाग की ओर से निर्धारित नहीं किया जाता है। फिर भी लक्ष्य के सापेक्ष आलू की बुआई अधिक क्षेत्रफल में की जाती है।

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

परेशान है लोग वोडाफ़ोन की चोरी से......

वोडाफ़ोन एक नेटवर्क कम्पनी जो लोगो को सस्ते दामो पर सेवाए प्रदान करने का विज्ञापन करती है और हच कम्पनी को खरीद कर भारत आयी है आज लोगो की जेबों पर भरी पड़ रही है, कही यह एक साजिश तो नहीं कुछ हो पर इसका काम करने का अंदाज ईस्ट इंडिया कम्पनी की याद दिलाती है इस कम्पनी ने हमरे देश के गाँव गाँव तक पहुच बना लेने के बाद अब देश की गरीब औए अशिक्षित जनता की जेब पर डाका डालने का काम शुरु कर दिया ।
हमारे देश की बड़ी आबादी जो गाँवो में रहती है वो या तो अशिक्षित या यूँ कह ले की अल्प शिक्षित है खास तौर से तकनीकी संबंधी जानकारी रखने वालो की संख्या तो न के बराबर है वह जनता बेबाकी से इस संचार क्रांती युग में मोबाईल फ़ोन का प्रयोग करती है ऐसे में वोडाफ़ोन कम्पनी ग्राहक की मांग के बिना ही उनके फ़ोन पर विभिन्न तरह की सेवाए शुरू कर देते है और उसके एवज में मासिक किराया उनके बैलेंस से कट लेते है लोग दुखी तो बहुत होते है मेरा पैसा कट लिया गया पर वो इसके बारे में शिकायत कहा करे इसका ज्ञान उनको नहीं और वो संतोष कर के बैठ जाते है की चलो इतना ही कटा फिर कटेगा तब किसी से बात करेंगे और इस बहाने कंपनी को लाखो का फायदा चोरी से हो जाता है, यह क्रम लगातार महीने दर महीने चलता रहता है और लोग परेशां होकर भटकते रहते है , उनके पास एक उपाय है की वो नंबर बदल दे लेकिन समस्या यह है की उनके घर के लोग परदेश कमाने गए होते है और नया नंबर लेने में तमाम तरह की कानूनी औपचारिकताये पूरी करनी पड़ती है जो एक नाजायज खर्च भी है।
इस समस्या के बारे में मै सुनता तो बहुत दिन से था पर भरोसा तब हुआ जब दीपावली की छुट्टी पर मै घर गया मेरे गावों के वोडाफोन उपभोक्ताओ में से ८०% लोग इस समस्या से पीड़ित थे जिनमे से कईयों के लिए मैंने कस्टमर केयर पर फ़ोन करके उनकी सेवाए बंद करवाई और भी प्रबल भरोसा तब हुआ जब बिना मेरी अनुमति लिए यह सुबिधा मेरे फ़ोन पर चालू कर दी गयी, जब मैंने इस बीमारी के बारे में जनसंपर्क स्थापित किया तो लोग इस कंपनी को गालिया देकर कह रहे थे की यह कम्पनी चोर है और बिमारो की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी मेरे घर के सभी लोगो ने अपना सिमकार्ड बदल दिया था कारण पूछा तोबस वही वोडाफ़ोन चोर है ।
समस्या इतनी ही होती तो भी काम चल सकता था पर आगे की कहानी कुछ यूँ है की जब मेरा पैसा कटा गया तो मैंने भी निर्धारित प्रक्रिया की तरह कस्टमर केयर में बात की वहा से पहला जबाब यह आया की की सर अगर आपका पैसा काट लिया गया है तो निश्चित ही आपने इस सेवा के लिए मांग की होगी अर्थात मै झूठा कई तरह से संतुस्ट करने के बाद मुझे कई अंको का एक शिकायत नंबर दिया गया और साथ ही यह बतया गया की आप निश्चिन्त रहे अगर आप का पैसा गलत कटा गया होगा तो ७२ घंटो के अन्दर आप को वापस कर दिया जायेगा । धीरे धीरे ७२ घंटे बीते पैसा वापस नहीं आया मैंने फिर बात की जवाब - सर अगर आपका पैसा वापस नहीं हुआ है तो इसका मतलब आपका पैसा सही कटा गया है और आपने इस सेवा की मांग अवश्य की होगी । इसके बाद सब ख़तम पैसा भी गया झूठे भी बने और अब कुछ नहीं करसकते है सिर्फ एक रास्ता की सिम बदल दू । अब से पहले मैंने अपने आपको इतना कमजोर कभी नहीं समझा था मै लाचर था मेरे पास सब कुछ है सबूत है गवाह है खुद को सही प्रमाणित करने के लिए पर मै कुछ नहीं कर सकता ज्यादा से ज्यादा अपनी भड़ास निकालने के लिए फिर से उस गरीब को गली दे सकता हू जो इस विदेशी चोर कंपनी की गुलामी कर रहा है लेकिन मै जनता हू वह तो मजबूर है ...
पर वह रे हमारी भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनी एयरटेल एक फोन पर पैसा वापस बस इतना बताना पड़ा की बिना मेरी अनुमति के फला नंबर पर यह सुबिधा लगा दी गयी है जिसके एवज में पैसा काट कर मुझे दुविधा में दल दिया गया है मै छठा हू की इस सुबिधा को मेरे फोन से हटा दिया जाये और मेरा पैसा वापस कर दिया जाये -जबाब ओके सर कुछ देर में आपके फोन पर एक सन्देश आएगा और आपका पैसा वापस कर दिया जायेगा और ५ मिनट के अन्दर पैसा वापस ....
इन विदेशियों से निपटने की कोई कारगर योजना सरकार बना नहीं रही या बनाना नहीं चाहती यह तो मै नहीं जनता पर यह जरूर जनता हू की यह सब बड़े पैसे वाले लोग है और कुछ भी खरीद सकते है लोगो की जमीर को भी और तो किया था ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दूसरी बात थ्री जी स्पेक्ट्रम यह भी बताता है की अब कोई भी बिक सकता है बस कीमत मुफीद हो .......
मै तो बस इतना ही कहूँगा की लोग वोडाफोन की चोरी से परेशान हैबाकी जाने सरकार और जनता.......

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

पूर्व छात्रो के जमा होने से खुशनुमा हुआ माखनलाल के परिसर का माहौल

एक तो एम ० फिल० की परीक्षा दूसरे ई ० टीवी ० का कैम्पस , आज दिनभर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रिकारिता विश्वविद्यालय में पुराने छात्रो का जमावड़ा रहा । पिछले कुछ दिनों तक विवादों में रहने के बाद आयी शून्यता को दूर करने के लिए इतना काफी था , खास तौर पर बड़ी संख्या में केव्स के छात्रों ने आकर माहौल को काफी खुशनुमा बना दिया छुट्टी का दिन होने के बाद भी विश्वविद्यालय में कोलाहल रहा ।
पिछले दिनों के माहौल ने परिसर की खुशी छीन ली थी , हार कोई ऊब रहा था कुछ लोगो ने तो घर जाने का मन बना लिया था , एक तो रूखा मौसम ऊपर से परिसर के रूखे माहौल से मन में एक अजीब तरह की अशांती थी लेकिन आज एक बार फिर लोग एकदूसरे के गले लगकर एक दूसरे का हल पूछते नजर आये, कैंटीन के बहार पूरा दिन छात्रो का जमावड़ा रहा और शाम कब हो गयी पता ही नहीं चला , आज फिर विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श हुआ जिसमे कुछ देर तो पिछली बाते केंद्र में रही लेकिन फिर अयोध्या मामले से लेकर बिहार चुनाव तक कई विषयो पर बहस हुयी , अयोध्या मामले के निर्णय को स्वागत योग्य बताते हुए लोगो ने निष्कर्ष निकला की अब मीडिया को इस विषय को छोड़ देना चाहिए , लोगो ने कहा की रोज रोज इस विषय पर बहस सामाजिक सोहार्द को विगड़ सकता है । कुछ लोगो ने तो यह भी कहा कि अब इस विषय पर कुछ भी न तो लिखा जाने चाहिए न ही दिखाया जाना चाहिए । विभिन्न विषयों पर सार्थक बहस के बीच बीच में लोग उन लोगो के बारे में भी जानकारी जुटते रहे जो नहीं आये थी या कही काम कर रहे थे । अयोध्या मामले पर लोगो ने आपना अनुभव बताते हुए कहा कि निर्णय के बाद वो कहा कहा गए और लोगो कि क्या प्रतिक्रिया रही ? कुलमिलाकर परिणाम यह निकला कि देश का आम आदमी इस निर्णय से खुश है वाह चाहे जिस समुदाय का हो।
आज कि इस सार्थक बहस ने हमारे खोये मनोबल को फिर वापस लाने का काम किया और एक बार फिर पढाई के ओर मन आकर्षित हुआ । लेकिन दुःख इस बात की है कि लोग अभी तक एक अच्छी नौकरी के लिए प्रयासरत ही है लेकिन खुसी कि बात यह है कि उनका मनोबल बढ़ा हुआ है और अपने पर पूरा भरोसा है ,आज नहीं तो कल लेकिन अच्छी शुरुवात करेंगे ।
हमारे लिए यही सब काफी था, और एक बार फिर पुराना माहोल बनाने में हमारे अग्रजो की जो भूमिका रही उसके लिए वो धन्यबाद के पात्र है । परिसर में दिग्गजों के जमावड़े ने माहौल तो खुशनुमा तो किया ही साथ ही छुट्टी के दिन भी राजू की काम से काम १०० चाय बिक गयी लगभग हार १५ मिनट के बाद कोई न कोई नया सीनियर आता था और आते ही सबसे पहले चाय का आदेश देता था ।
कहते है बीता हुआ दिन लौट कर नहीं आता लेकिन हमलोगों के लिए एक बार फिर बीता दिन लौट आया , हा कुछ अग्रज जो नहीं आये उनकी कमी जरूर खली लेकिन यह सुनकर संतोष हो गया की काम कर रहे है ।

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

हम ही है हिंदुस्तान

हिन्दू कटे या कटे मुसलमान ,सबसे पहले दोस्तों कटेगा हिंदुस्तानसंगम से बना है देश हर धर्म इसकी जान , कई धर्मो , भाषाओ ,संस्कृतियों से मिलकर बना है हिंदुस्तान ।हिंदुस्तान शरीर है धर्म इसकी भुजाये एक भी भुजा कटी तो अधुरा रहेगा हिंदुस्तानहै उदारहण पडोशी देशो की पहचान , कट कट कर जो बने है और लगते है बेजानकहते है इनका या उनका है हिंदुस्तान ,वो खुद ही नहीं जानते क्या चीज है हिंदुस्तानचंद स्वार्थियो के चक्कर में हम अगर पड़ जायेंगे, स्वार्थी स्वार्थ निकालेंगे और हम खड़े पछतायेंगेनेता कुर्सी की तलाश में अपने घोड़े दौड़ाएंगे, इन घोड़ो के पैरो से बस मानव रौंदे जायेंगेमानवता होगी शर्मशार और नेता खुशी मनाएंगे, विश्व पटल पर भारत की संकीर्ण छवि बनायेंगेवो घूमेंगे ए० सी 0 में और हम फुटपाथ पर रात बिताएंगे,कभी कभी कुछ जलशो में वो हम पर रहम दीखायेंगे ,पीछे मुड़ते ही हमारी गरीबी लाचारी का मजाक उड़ायेंगे हमसे ही बने है वो और वी ० वी ०आई० पी ० कहलायेंगे , अब हम उनके दरवाजे के अन्दर नहीं घुसने पाएंगे इसलिए दोस्तों कहता हू लो खुद को पहचान ,इससे पहले फिर एक बार जल उठे हिंदुस्तानबेनकाब करो इन अलगाववादी ताकतों को और बता दो ,न हम हिन्दू है न है हम मुसलमान , हम जान गए है की हम ही है हिंदुस्तान हम ही है हिंदुस्तान ............

बुधवार, 25 अगस्त 2010

टूटता दिख रहा है कुठियाला का तिलिश्म

माखनलाल में रहना है तो हमसे मिलकर चलना है , कुठियाला मुर्दाबाद , कुठियाला के कार्यकाल की जाँच हो , कर्मचारी एकता जिंदाबाद , जो हमसे टकराएगा चूर चूर हो जायेगा हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है । ये नारे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में आज शिक्षक कर्मचारी और अधिकारी जोर जोर से चिल्लाकर लगा रहे थे और इन्ही नरो को तख्ती प़र लिख कुलपती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे । विश्वविद्यालय के कुलपति बी० के० कुठियाला की नियुक्ति और पद सँभालने के कुछ दिन बाद से ही उन पर अनके आरोप लगाये जारहे थे कुछ लोग तो तो इनकी नियुक्ति पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहते है की इसके पीछे बहुत बड़ी राजनीति है और इसमें इनका संघी होना बहुत काम आया है इनने भी यहाँ पहुचते ही सबसे पहले विश्वविद्यालय के लैटर पैड का रंग बदल कर भगवा रंग दे दिया तभी से लोग कयास लगा रहे थे की अब पत्रकारिता विश्वविद्यालय का भगवाकरण होने वाला है । तब से आज तक कुलपति जी के सारी नीतियों को चुप चाप मानता चला आ रहा प्रशासन और कर्मचारियों के सब्र का बांध आज टूट ही गया हड़ताल और प्रदर्शन का कारण पता करने पर कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अर्जुन लाल गोहरे ने बताया की विश्वविद्यालय तेलंगा के कार्यालय में १०० से अधिक कर्मचारी टास्क पर नियुक्त है इन को न तो परमानेंट किया जा रहा न इनके वेतन में कोई वृद्धी की जा रही है , खाली पड़े पदों के भर्ती का आदेश होने के बाद भी इसे भरा नहीं जा रहा है इन्होने मांग की है की पिछले लगभग १० वर्षो से संस्था को ३ से ४ हज़ार रुपयों में अपनी सेवा दे रहे कर्मचारियों को एक सरल प्रक्रिया के तहत नियमित किया जाये कुलपति पर आरोप लगते हुए इन्होने कहा कि ये बिना किसी को कोई जानकारी दिए गुपचुप तरीके से शासन को पत्र लिखकर रजिस्ट्रार और परिक्षानियांत्रक के पद पर आपने आदमियों को बैठना चाहते है जबकि वर्तमान में इन पदों को देख रहे डा० श्रीकांत सिंह और राजेश पाठक बढ़िया काम कर रहे है । कर्मचारियों की मांग है डा० श्रीकांत सिंह रजिस्ट्रार के पद की योग्यता रखते है और इन्हें ही इस पद पर रखा जाये क्योकि ये लम्बे समय से हमारे बीच में है और हमारी समस्यायों को भलीभांति समझ सकते है । वर्तमान में आप प्रसारण पत्रकरिता विभाग के एच० ओ० डी० के पद पर रहते हुए भी अपनी जिम्मेदारी को बहुत अच्छे ढंग से निभा रहे है । इनका कहना है श्री कुठियाला के आने के बाद यहाँ भ्रस्टाचार फैल गया है यू० टी० डी० सेंटर के संचालको की ओर से शिकायत आ रही है की कुलपति द्वार बनाई तीन सदस्यीय टीम घूस लेकर सेंटर को मान्यता दे रही है । कर्मचारियों ने कहा की अभी कुछ दिन पहले विश्वविद्यालय के काम से जा रहे 3 कर्मचारी की रात में दुर्घटना से दर्दनाक मौत हो गयी लेकिन उनके परिवार को कोई विशेष आर्थिक सहायता नही दी गयी , इन्हें जल्द सहयता दिया जाये और इनके परिवार से एक एक सदस्य की अनुकम्पा पर नियुक्ति की जाये । सब ने एक सुर में कुलपति के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कहा की यदि जल्दी हमारी मांगे पूरी नहीं हुयी तो हम गांधवादी ढंग से हड़ताल करेंगे और लम्बी लडाई लड़ेंगे । यह था आज के तजा घटनाक्रम का हल कुछ दिन पीछे चले तो पता चलता है की कुलपति जी आते ही केवल सत्ता आपने हाथ में लेना चाहते थे इसके लिए आप अपने मन से कानून पर कानून बनाते रहे और लोग आँख बंद कर मानते रहे चाहे वाह शुराक्षकर्मियो की संख्या घटना हो या कुछ ओर परिवर्तन की बयार कुछ ऐसे चली की विश्वविद्यालय के पानी के सहारे जीने वाले लडको को १० बजे के बाद विश्वबिद्यालय में घुसना मना कर दिया गया यहाँ पढने वाले लड़के अपने घर से ज्यादा समय यहाँ बिताते थे यहाँ पर विभिन्न विषयों पर रात में घंटो बहस होती रहती थी पर अब नहीं । अभी हद नहीं हुयी इस छोटे से विश्वविद्यालय में १४ नए कोर्स शुरू किये गए जबकी पहले से चल रहे कोर्सो के लडको का भविष्य अभी तक अँधेरे में है इनके प्लेसमेंट की कोई ब्यवस्था नहीं है इस वर्ष निकले बड़ी संख्या में छात्र बेरोजगार घूम रहे है । कुलपति के सामने छात्रो ने गुहार लगाई थी पर कोई सुनवाई नहीं हुयी इन छात्रो में कई ऐसे है जिन्होंने अपना कोर्स लोन लेकर किया है।आपने विश्वविद्यालय में प्रवेश की परम्परागत प्रेवश परीक्षा को समाप्त कर मेरिट सिस्टम लागू किया जिसका परिणाम यह रहा की ४ लिस्ट निकलने के बाद भी कई विभागों की सीटे खाली पढी है। जो नए कोर्स शुरू किये गए उनमे कुछ में तो कोई आवेदन ही नहीं आया ओर कुछ में २य ३ छात्रो का प्रवेश हुआ इसके आलावा पढ़ाने के लिए शिक्षक नदारद है । कुल मिलकर यहाँ छात्रो के भविष्य के साथ गन्दा मजाक करने की कोशिश की जा रही है पर अब तक सब चुप थे अब जब बात आपने पर आयी तो लोगो ने चिल्लाना शुरू किया खैर आवाज बुलंद है ओर लगता है कि आब कुलपति का तिलिस्म टूट रहा है वैसे अभी तक यह विश्वविद्यालय राम भरोसे चल रहा है कदम कदम पर भ्रस्टाचार है देखना यह होगा कि कुछ बदल पता है या सबके मुह ,बंद कर दिए जायेंगे ।

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

मीडिया को कोसना बंद करे ...

जाने माने फ़िल्मकार महेश भट्ट ने मीडिया पर अपनी भड़ास निकलते हुआ दैनिक जागरण के सम्पादकीय में लिखा है की खबरे देते हुए अपने सीमओं और कर्तब्यो को भूल जाता है। आपको इस बात का बहुत कष्ट है की मीडिया निजी जीवन में घुस रहा है, हमारे बेडरूम तक घुस रहा है , आम आदमी को रिपोर्टर की तरह प्रयोग कर रहा है । खैर गलत कुछ नहीं है ।
पिछले कुछ दिनों से मीडिया के खिलाफ लिखना एक फैसन सा बनता जा रहा है और खास करके इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ, लेकिन मै यह नहीं समझ पा रहा हूँ की इन लोगो को मीडिया के बेडरूम में घुसने से दिक्कत क्यों है? भारत के लोग तो परेशान है की मीडिया उनके बेडरूम में नहीं पहुच रही है । क्योकी उनका बेड रूम ही उनका किचेन है, वही खाना बनाते है ,वही कपडे रखते है वही सोते है कोई बहार से मिलने आ जाये तो वही बैठ कर मिलते भी है , इन्हें दुःख इस बात का है की मीडिया हमारी निजी जिन्दगी में नहीं झाकता है। वो कहते है मीडिया दिखाए की आज हम बिना खाए सो गए है, आज मालिक नाराज थे तो पैसा नहीं मांग सका खाना नहीं बना बच्चे भी भूखे है, पर ऐसा हो नहीं रहा है।साहब लिखते है की मीडिया को अपना खुद का कोड ऑफ़ सेंसरशिप तैयार करना चाहिए , लोगो को ऐसी खबरों का वहिष्कार करना चाहिए जो मानवीय सम्बेदानाओ को और भावनाओ को आहात करने वाली होसाहाब अपनी फिल्मे बनाते वक्त ऐसा कई नहीं सोचते है । तब तो आप कहते है जो डिमांड है मै उसकी पूर्ती कर रहा हू , आप कहते है की मै फिल्मो पर पैसा लगता हू पैसा कमाने के लिए उस समय इनके जेहन में यह ख्याल नहीं आता की उनके इस कृत्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा । पिछले दिनों मीडिया ने कुछ गलतिया की लेकिन वो नियोजित नहीं था और उसके बाद लगातार आलोचनों का शिकार होकर उसने सुधार भी किया , पर आज परेशानी इण्डिया के लोगो को है उन १० से २० प्रतिशत लोगो को है जो आम जनता पर शासन कर रहे है इनके चहरे बाहर से जितने साफ दीखते है ये अन्दर उतने ही गंदे है पर ये चाहते है की इनकी गंदगी छुपी रहे और ये आराम से शासन करते रहे , इनके बेडरूम में गड़बड़ी है इसलिए ये वहा मीडिया का आना नहीं पसंद करते है पर मुझे खुशी है की मीडिया अपना काम कर रही है, गरीबो की गरीबी दिखा नहीं पा रही है कम से कम अमीरों की ऐयाशी तो दिखाती है , ये लोग मीडिया को गली देंगे की यह नहीं दिखाना चाहिए पर खुद नहीं सोचेंगे की यह नहीं करना चाहिए । मुझे समाज के इन कथित बुद्धिजीवियों से यही कहना है की मीडिया पर अंकुश लगाने से पहले खुद पर अंकुश लगाओ , खुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करो , मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई?
जरी रहेगा .............