बाज़ार का रूप बनते बनते कुछ ऐसा बन गया है की अब अगर कुछ खरीदना है तो सावधान हो जाईये हो सकता है बाज़ार से आप वो लेकर आए जिसे लेने की आपकी इच्छा नही थी लेकिन...............
जी हाँ पूंजी वादी देशो से आयातित बाज़ारवाद जहा उन देशो में सफलता पूर्वक फल फूल रहा है तथा अपने ग्राहकों को खुश रख रहा है वही हमारे बेचने की परिभाषा इसतरह बदल गई की अब चोरी करने पर उतारू है। दुकान के बहार बड़े बड़े शब्दों में लिखा है की ९०% ऑफ़ अन्दर जाए तो कुछ सडेसामानों का छोटा सा ढेर लगा है जिसपर ऑफ़ है बाकी की कीमत सुनते ही दिमाग की ऐसी की तैसी हो जाती है । ग्राहक देवता होता है शब्द हमारा होकर भी अब हमारा नही रहा इसका सही अर्थो में प्रयोग वो देश कर रहे है जिनसे हम बाजारवाद लेकर आए है । सही अर्थो में कहे तो अल्पलाभ लेने के लिए हम उनकी बुराई उठा लाये है और वो हमारी अच्छाई ले गए । अब बाज़ार में जो मीठे शब्द सुनाई देते है वो हमें ठगने के लिए होते है । और अगर आप बचना कहते है तो होसकता है दुकान वाले की गाली भी खानी पड़े। तो अब सावधान हो जाए। वरना लुटना होगा ।
क्या है इस बाजारवाद की अन्तिम विन्दु यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। इतना तो पक्का है इससे निपटना है तो आप मानवता दया छोड़कर और पूर्ण रूप से नशील बन कर बाज़ार में प्रवेश करे लेकिन क्या इससे समस्या का समाधान सम्भव है.........................या एक और समस्या का जन्म होगा।
जारी रहेगा .....................
शनिवार, 3 अक्तूबर 2009
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बचमा तो पड़ेगा
जवाब देंहटाएंएग्रीगेटरों के द्वारा अपने ब्लॉग को हिंदी ब्लॉग जगत परिवार के बीच लाने पर बधाई।
सार्थक लेखन हमेशा सराहना पाता है।
मेरी शुभकामनाएँ
बी एस पाबला
thik hai, aapne bata diya.narayan narayan
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया. लिखते रहिये. स्वागत है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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