भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में एक बात तो खुल कर सामने आ गयी की भा० जा० पा० बिना मंदिर के राजनीत नहीं कर पायेगी । नए नवेले राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कुछ बाते ऐसी कही की मन खुश हो गया ,
जैसे - अब दिल्ली का दौरा करने से टिकेट नहीं मिलेगा , टिकेट चाहिए तो गाँव में जाओ आम आदमी के लिए काम करो ।
किसी को काटकर छोटा मत करो खुद बड़े बन जाओ । आप ने युवाओ की जरुरत अपनी पार्टी में समझी और पार्टी को आधुनिक सुबिधाओ से लैस बनाने की कोशिश की । सब कुछ बहुत अच्छा गया और गडकरी जी ने बहुत अच्छे से अपनी शक्ती प्रदर्शन किया लेकिन जाते जाते उन्हें मंदिर फिर याद आ गया ।
आज देश तमाम समस्याओ से घिरा हुआ है । महगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है , देश आंतरिक सुरक्षा से जूझ रहा इसमें शांती लेन के बजाये आग में घी डालने का काम कर रहे है ।
मुझे समझ में यह नहीं आ रहा है की की जब मंदिर का मामला कोर्ट में है तो क्यों न यह पार्टी अपना पूरा दम लगाकर जल्दी से सही निर्णय निकलवाती है जिससे मंदिर बनसके ।
सुझाव के लिए बस इतना कहना चाहूँगा की आप मंदिर के बारे में अब सोचना बंद करो आप तो अगर सोच सकते हो देश के बारे में सोचो , कुर्सी की राजनीत को छोड़कर विकाश की राजनीत करो । अगर आप आम आदमी के लिए काम करोगे तो आम आदमी आप के लिए करेगा ।
आपसे उम्मीद इसलिए है की आप कम से कम यह तो समझ गए है की किसी को छोटा मत करो खुद बड़ा बनो । आम आदमी को आप भूलेंगे तो जनता आपको भूलेगी । बाकी सोचना आप का काम है... सिर्फ स्टेज पर खड़े होकर बड़ी बड़ी बात करने काम नहीं चलने वाला है कुछ काम करके दिखाईये ।
जारी रहेगा .......................
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
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आपकी खुशी, या नाखुशी के लिए भाजपा नहीं बनी है. मुद्दा मंदिर नहीं है, बल्कि ये छद्म-धर्म निरपेक्षता है जो देश के बहुसंख्यक समाज का सम्मान नहीं करता और कट्टरपंथ को बढ़ावा देता है.
जवाब देंहटाएंsrimaan aapki baat me bhee to ek naakhushi dikh rhai hai aur kiske liye aap safaai de rahe hai bhaajpa ke liye kee apne liye aur aap ke maatra kah dene se bhaajpa ka mandir motto badalne vaala bheee nahi hai
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