बचपन का वो दिन जब मै इतना जनता था की अगर कोई आपसे कुछ मांग रहा है तो यह उसकी जरुरत है । और अगर मै उसको नहीं दे रहा हू तो ये गलत है । उस समय तक मुझे यह नहीं पता था कि भिखमंगी एक धंधा भी होता है।
उन्ही दिनों की बात है घर पर दोपहर के समय एक भिखारी आया था बहार बड़ी जोर जोर से आवाज़ दे रहा था , मै बहार निकला उसे देखकर वापस आया और मां से बोला की कुछ दे दो बहार एक भोखारी बेचारा खड़ा है और बहुत देर से चिल्ला रहा है मां ने मना किया और बोली सुबह से चार लोग आ चुके है ये पांचवा है ॥ कोई जरुरत नहीं है इनको भीख देने कि ये दिन भर में हमसे ज्यादा कमाते होंगे । पर मेरे मन को संतोष न हुआ और मै जिद पर अड़ गया कि उसे देना ही होगा । मां ने मेरी जिद पूरा करने के लिए थोडा सा अनाज दिया और मैंने उस भिखारी को दे दिया मुझे लगा मैंने एक अच्छा काम किया है लेकिन मन में याह प्रश्न बना रहा कि जब वो हमसे अच्छा कमाता तो भीख क्यों मांगता फिर मै धीरे धीरे करके इस प्रश्न को भूल गया ।
धीरे धीरे करके मै बड़ा हो गया था और घर से बाहर रहकर पढ़ाई कर रहा था ढेरो किताबे पढी और ट्रैफिक सिग्नल जैसी कई फिल्मे देखी मरे मन में यह भावना घर कर गयी थी भीख मांगना अब एक पेशा बन चुका है और भीख देना गलत बात है । मैंने लगभग पिछले पांच सालो में किसी को एक पैसा भीख नहीं दिया और और घर से निकलने के बाद रोज कमसे काम बीस भिखारियों से सामना होता होगा
अब फिर लगता है की भिखमंगी के इस धंधे में कई भिखारी ऐसे भी भी होंगे जो वास्तव में ज़रूरतमंद होंगे अब फिर मुझे वही प्रश्न परेशान कर रहा है कि बचपन में मै सही था या मां और अब मुझे क्या करना चाहिए ?......................
जरी रहेगा ...
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
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