आज बड़े पैमाने में लोग छोटी बीमारी की दावा मेडिकल स्टोर से ही ले लेते है , अस्पताल जाने से बचते है ॥ ऐसा क्यो ? लंबे समय से यह प्रश्न परेशान करता था अब उत्तर मिल गया ।
दरशल सरकारी अस्पतलो की दशा तो पहले से शुभान अल्लह है और निजी अस्पतालों में जाने का नम सुनकर ही मरीज की बीमारी बढ़ जाती है । इसका एक ताज़ा अनुभव मेरे पास है ॥ अभी अभी मेरे एक मित्र रोड पर कर रहे थे की मोटरसायकिल सवार नव युवक उन्हें ठोकर मरकर चला गया मित्र सड़क पर गिर गए और बेहोश हो गए दोस्त आनन फानन में उन्हें लेकर पास के नेशनल हॉस्पिटल ले गए डॉक्टर ने तुरंत दो हज़ार की दावा लिख दी । दावा आयी । और फिर डॉक्टर साहब ने अपने सरे संदेह दूर कर लिए जितनी जाँच सम्बह्व हो सकती है सब कर ली गयी । सब कुछ नोर्मल निकला । मित्र को मामूली चोटे आयी थी लेकिन उन्हें २४ घंटे रोके रखना अनिवार्य बताया गया । खैर सब हो गया ॥
अब बरी थी डिस्चार्ज कराने की तो सुबह अस्पताल का कुल बिल पञ्च हज़ार रुपये से कुछ अधिक था । जिसमे दो हज़ार रत भर अस्पताल में रुकने का चार्ज था । अब मित्र घर आ गए है चोट में कोई दर्द नही है सब कुछ सामने है । बस दर्द है की पञ्च हज़ार का ।
जरा सोंचे एक आम आदमी ओ भी छात्र है उसके लिए कितना मायने रखता है यह सब ? क्या वह फिर कभी अपने किसी मित्र को ले जाएगा अस्पताल? यह है स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण ॥
जरी रहेगा .....
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
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dava me baimaani aspataal me farzivaada sarkaar jhooti kaam dhela bhar nahi zaroor i sab apnimaut ko daavat de rahe hai
जवाब देंहटाएंaaj ki duniya ek bazar hai. aur log vyapari hai.. kya karenge bhai..
जवाब देंहटाएंबाज़ार के नियम भी पूरे हो जाएं तो किसी को शिकायत नही होगी। बाज़ार में सिर्फ मुनाफा खोरी नही ग्राहक संतुष्टी भी जरूरी है।
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