गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

पढ़ कर कैसे हो गए .....

बचपन का वो दिन जब मै इतना जनता था की अगर कोई आपसे कुछ मांग रहा है तो यह उसकी जरुरत है । और अगर मै उसको नहीं दे रहा हू तो ये गलत है । उस समय तक मुझे यह नहीं पता था कि भिखमंगी एक धंधा भी होता है।
उन्ही दिनों की बात है घर पर दोपहर के समय एक भिखारी आया था बहार बड़ी जोर जोर से आवाज़ दे रहा था , मै बहार निकला उसे देखकर वापस आया और मां से बोला की कुछ दे दो बहार एक भोखारी बेचारा खड़ा है और बहुत देर से चिल्ला रहा है मां ने मना किया और बोली सुबह से चार लोग आ चुके है ये पांचवा है ॥ कोई जरुरत नहीं है इनको भीख देने कि ये दिन भर में हमसे ज्यादा कमाते होंगे । पर मेरे मन को संतोष न हुआ और मै जिद पर अड़ गया कि उसे देना ही होगा । मां ने मेरी जिद पूरा करने के लिए थोडा सा अनाज दिया और मैंने उस भिखारी को दे दिया मुझे लगा मैंने एक अच्छा काम किया है लेकिन मन में याह प्रश्न बना रहा कि जब वो हमसे अच्छा कमाता तो भीख क्यों मांगता फिर मै धीरे धीरे करके इस प्रश्न को भूल गया ।
धीरे धीरे करके मै बड़ा हो गया था और घर से बाहर रहकर पढ़ाई कर रहा था ढेरो किताबे पढी और ट्रैफिक सिग्नल जैसी कई फिल्मे देखी मरे मन में यह भावना घर कर गयी थी भीख मांगना अब एक पेशा बन चुका है और भीख देना गलत बात है । मैंने लगभग पिछले पांच सालो में किसी को एक पैसा भीख नहीं दिया और और घर से निकलने के बाद रोज कमसे काम बीस भिखारियों से सामना होता होगा
अब फिर लगता है की भिखमंगी के इस धंधे में कई भिखारी ऐसे भी भी होंगे जो वास्तव में ज़रूरतमंद होंगे अब फिर मुझे वही प्रश्न परेशान कर रहा है कि बचपन में मै सही था या मां और अब मुझे क्या करना चाहिए ?......................
जरी रहेगा ...

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

अस्पताल और आम आदमी

आज बड़े पैमाने में लोग छोटी बीमारी की दावा मेडिकल स्टोर से ही ले लेते है , अस्पताल जाने से बचते है ॥ ऐसा क्यो ? लंबे समय से यह प्रश्न परेशान करता था अब उत्तर मिल गया ।
दरशल सरकारी अस्पतलो की दशा तो पहले से शुभान अल्लह है और निजी अस्पतालों में जाने का नम सुनकर ही मरीज की बीमारी बढ़ जाती है । इसका एक ताज़ा अनुभव मेरे पास है ॥ अभी अभी मेरे एक मित्र रोड पर कर रहे थे की मोटरसायकिल सवार नव युवक उन्हें ठोकर मरकर चला गया मित्र सड़क पर गिर गए और बेहोश हो गए दोस्त आनन फानन में उन्हें लेकर पास के नेशनल हॉस्पिटल ले गए डॉक्टर ने तुरंत दो हज़ार की दावा लिख दी । दावा आयी । और फिर डॉक्टर साहब ने अपने सरे संदेह दूर कर लिए जितनी जाँच सम्बह्व हो सकती है सब कर ली गयी । सब कुछ नोर्मल निकला । मित्र को मामूली चोटे आयी थी लेकिन उन्हें २४ घंटे रोके रखना अनिवार्य बताया गया । खैर सब हो गया ॥
अब बरी थी डिस्चार्ज कराने की तो सुबह अस्पताल का कुल बिल पञ्च हज़ार रुपये से कुछ अधिक था । जिसमे दो हज़ार रत भर अस्पताल में रुकने का चार्ज था । अब मित्र घर आ गए है चोट में कोई दर्द नही है सब कुछ सामने है । बस दर्द है की पञ्च हज़ार का ।
जरा सोंचे एक आम आदमी ओ भी छात्र है उसके लिए कितना मायने रखता है यह सब ? क्या वह फिर कभी अपने किसी मित्र को ले जाएगा अस्पताल? यह है स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण ॥
जरी रहेगा .....

बुधवार, 18 नवंबर 2009

साधो इतना दीजिये जमे कुटुंब समय ...

आज हम जिस दोर में जी रहे है ये दौर कैसे आया किसकी देन है यह सब । मै उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के पटना खरगौरा ग्रामसभा के पटना गाँव का रहने वाला ..भारत का एक नागरिक हूँ ।
गाँव से बहार निकलकर शहर में आया की अच्छे से पढ़ाई करूँगा और सहरो की तेज रफ़्तार का हिस्सा बनूँगा, होश तो तब आया जब समझ में आया की इस रफ़्तार का हिस्सा बनना हो तो बनो पर ये उम्मीद मत करना की दौड़ते -दौड़ते अगर आप गिर गए तो की कोई आपको कन्धा देने के रुकेगा । यहाँ दौड़ जीतने के लिए है और जो रुक गया वो हारेगा। लोगो को इतना नही पता की की उनका पड़ोसी क्या करता है , आज उसके बच्चो ने खाना खाया है की नही बस जागते तो जीतने के लिए और सोते है तो जीतने के लिए ।
कितना अच्छा था अपना गाँव कम से कम शुबह शाम लोग मिलते थे और पूछते थे कैसे हो भैया कोई परेशानी तो नहीं है . भूख लगी है और अपने घर खाना बनने में देर है तो पड़ोसी के घर खाना खाना खा लिया .. कभी जो किसी के घर कुछ खास बना तो अपनने आप खिसकते हुए अपने घर तक आ जाता था , आज लग रहा है चमक दमक न सही पर असली भारत गाँव में बसता है । ... जहा हर मर्ज की दावा है अपनो का प्यार .अपनों का प्यार , वाह रे मेरा गाँव ...........
......................................... जरी रहेगा .......

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

श्रावस्ती की कहानी

उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला जो वर्त्तमान मुख्यमंतरी मायावती जी की देन है जहा के लोग आज समस्त सुबिधाओ से विमुख होकर जीवकोपार्जन करने को मजबूर है । श्रावस्ती जिले की कहानी यह है की जिले में एक तो मानसून देर से आया तो धान की फसल बर्बाद हो गई , कुछ किसानो कर्ज लेकर या अपने बच्चो का पेट काटकर किसी तरह धान के फसल को पानी देकर बचाए रह गए तो जब मानसून आया तो ऐसे की बाढ आगई और बची खुची फसल भी चौपट हो गयी क्या होगा भारत के उन नागरिको का यह अभी तक पहेली बना हुआ है दुसरी तरफ़ बाढ़ के पानी ने सडको को पुरी तरह बर्बाद कर दिया है और जो नाममात्र की सड़के थी भी वो किसी काम की नही रह गयी है। ठण्ड की शुरुवात हो गयी है और लोगो के घरो में अनाज लगभग ख़तम होने को है और कुछ लोग तो एक टाइम खा रहे है खास तौर से हरिजन बस्तियों की कहानी सुनकर रोना आता है जबकि सरकार मायावती जी की है जो अपने को हरिजनों का ठेकेदार बताती है । और तो और जिले के मुख्यालय से सटे गावो की कहानी ऐसी है तो दूर दराज की क्या कहानी होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । मायावती जी सरकार पार्क और मुर्तिया बनवाने में इतना ब्यस्त हो गयी की जनता के भूख और प्यास का भी ख्याल न रहा ऐसे में कैसे जीवन यापन होगा श्रावस्ती के लोगो की यह प्रश्न अभी तक एक पहेली बना हुवा है । अब देखना यह होगा की आम लोगो की बात करने का दंभ भरने वाली कांग्रेस सरकार को इनका ख्याल आता है की नहीं ?. जरी रहेगा

शनिवार, 3 अक्टूबर 2009

आज का बाज़ार

बाज़ार का रूप बनते बनते कुछ ऐसा बन गया है की अब अगर कुछ खरीदना है तो सावधान हो जाईये हो सकता है बाज़ार से आप वो लेकर आए जिसे लेने की आपकी इच्छा नही थी लेकिन...............
जी हाँ पूंजी वादी देशो से आयातित बाज़ारवाद जहा उन देशो में सफलता पूर्वक फल फूल रहा है तथा अपने ग्राहकों को खुश रख रहा है वही हमारे बेचने की परिभाषा इसतरह बदल गई की अब चोरी करने पर उतारू है। दुकान के बहार बड़े बड़े शब्दों में लिखा है की ९०% ऑफ़ अन्दर जाए तो कुछ सडेसामानों का छोटा सा ढेर लगा है जिसपर ऑफ़ है बाकी की कीमत सुनते ही दिमाग की ऐसी की तैसी हो जाती है । ग्राहक देवता होता है शब्द हमारा होकर भी अब हमारा नही रहा इसका सही अर्थो में प्रयोग वो देश कर रहे है जिनसे हम बाजारवाद लेकर आए है । सही अर्थो में कहे तो अल्पलाभ लेने के लिए हम उनकी बुराई उठा लाये है और वो हमारी अच्छाई ले गए । अब बाज़ार में जो मीठे शब्द सुनाई देते है वो हमें ठगने के लिए होते है । और अगर आप बचना कहते है तो होसकता है दुकान वाले की गाली भी खानी पड़े। तो अब सावधान हो जाए। वरना लुटना होगा ।
क्या है इस बाजारवाद की अन्तिम विन्दु यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। इतना तो पक्का है इससे निपटना है तो आप मानवता दया छोड़कर और पूर्ण रूप से नशील बन कर बाज़ार में प्रवेश करे लेकिन क्या इससे समस्या का समाधान सम्भव है.........................या एक और समस्या का जन्म होगा।
जारी रहेगा .....................

शनिवार, 19 सितंबर 2009

देशभक्त और कुर्सीभक्त

"हम तैयार है देश पर किसी भी तरह के हमले को रोकने के लिए" बहुत अच्छी शब्दावली और और नपी तुली भाषा या ऐसे कहे की लिखा हुआ भाषण। बहुत बटोर चुके वाह-वाही। पिछले दिनों की खबरों पढ़ कर कलेजा फट जाता जाता है की आज इतने समय बाद भी देश की बॉर्डर की ब्यस्था अस्त ब्यस्त ही है और हमरे कुर्सी भक्त इंतजार कर रहे है हमले की हमला होगा तो निपट लेंगे हार जायेंगे तो फिर से तैयारी करेंगे , उन्हें क्या गम कौन शहीद होगा उनका बेटा तो कुर्सी पर रहेगा ही ,कुछ सहयोग राशि देंगे कुछ सड़के कुछ मैदान बनेंगे और फिर भूल जायेंगे ।आज सीमा से सटे गाँव के लोगो की माने तो चीन फिर १९६२ जैसी हरकते कर रहा है उसके सैनिक हमारे देश में घुस लोगो को परेशान करता है उन्हें गलियां देता है उनका अपमान करता है सीमा के नियमो का उलंघन कर रहा है और हम बात कर रहे है , बात में भी हम पुष्ट है की सब ठीक है। एक तरफ चीन लगातार युद्घ की तैयारी कर रहा है सड़के बना रहा है रेलवे लाइन बना रहा है और हम , हम भी कर रहे है सन १९६२ से अभी तक कर रहे है और न जाने कब करते रहेंगे । अगर सही में हमारे नेता जी देश के लिए कुछ वफादार है तो अब तो जग जाए कमसे कम भूत पूर्व सैनिको के अनुभव से आज के समय के अनुकूल सीमा पर रहने , खाने और यातायात की सुबिधा तो करदे जिससे हमारे देशभक्तों में किसी तरह की कुंठा न आने पाए । देश के एक आम नागरिक की जगह अपने को रख कर देखे और सोचे की अगर उनका लड़का फौज में होता और लड़ाई होती तो उनके दिल पर क्या गुजरती । सबसे अहम् बात यह है की एक बार अभी तक तो गरीबी का बहाना चलता रहा पर अब बहुत हो चुका अगर एकबार फिर पुरानी भूल हुयी तो जनता इसका करार जबाब देगी क्योकि अब उसे सब पता है की मलाई कहा है और कौन खा रहा है । अब बहाने नही चलेंगे क्योकि दुनिया कारणों पर नही परिणामो पर चलती है । जय हिंद,
जारी रहेगा..................

सोमवार, 31 अगस्त 2009

आज की आज़ादी ....

आज जब देश स्वाधीनता दिवस के रंग में सराबोर है तो अनायास ही मन में एक घुटन होती है की आज जिस पर्व को जीवंत करने कोशिश हम कर रहे है इस दिन को पर्व बनने में हमारे जिन धुरंधर देशभक्तों ने कुर्बानी दी आज देश की दशा देखकर कितना खुश होते होंगे ? इतिहास को हम ध्यान से देखे तो पता चलता है की गाँधी जी भगत सिंह और अनेको देश भक्तो ने कितना हसीं भारत का सपना देखा था। और केवल एक आशा पर हसते हसते कितने ही देशभक्त फांसी पर चढ़ गए की हम मर गए तो गम नही यारो देश तो जिन्दा रह जाएगा। आज वाही देश स्वार्थी नेताओ के चलते भारत और इंडिया रुपी दो भागो में बंट चुका है और तिल तिल करके मर रहा है।लोग कह रहे है की भारत युवाओं का देश है और इस समय चमक रहा है मै देख रहा हू तो मंजर कुछ और है और शायद सब इस मंजर को देख सकते है या देख रहे है पर सबकुछ देख कर भी चुप है यह देख कर आश्चर्य होता है और अगर अपने आप को ध्यानमग्न करता हू तो बहुत तेज शोर सुनाई देता है और लगता है सब ख़तम होने वाला है पर आँखे खुलती है तो सब शांत । रस्ते पर चलते चलते अनेको लोग मिल्जाते है जिनमे कोई कहता है भगत सिंह ने दिलाई आज़ादी कोई कहत है ये तो गाँधी बाबा की देन है . मै अनायाश ही poonch लेता हूँ की क्या आप आजाद है तो लोग कहते है जितना है उतना तो है तो फिर कहता हू गाँधी बाबा ने और भगत सिंह जी ने आधी अधूरी आज़ादी की बात नही की थी वो तो पूर्ण स्वाधीनता की बात कर रहे थे । फिर ये आज़ादी किसकी दी हुई है . तो उनका कहना होता है आप चाहते क्या है , मै कहता हू की मै भारत को आजाद कराना चाहता हू . वो कुछ देर चुप रहकर धीरे से बोलते है बेटा अभी तुम थोड़ा और बड़े हो जाओ सब समझ जाओगे इतना कहकर वो इस बात को यही ख़तम कर देते है मै चिल्लाता रहता हू आप तो बड़े है आप बताये मेरे साथ क्या होना वाला है। लेकिन अब समुन्दर शांत हो चुका । और मै अपने प्रश्नों के साथ फिर अकेला पड़ जाता हू .सब जानते है की क्या चल रहा है क्या होने वाला है पर बोलते नही है क्योकि परिवार है उनको देखे की देश की दशा इतना नही समझ पते है की जिस लाडले को इतने प्यार से पल रहे है कल उसका क्या होगा। मेरे समझ में ये नही आता है क्यो लोग सब कुछ भी जानकर अनजान बनते है ?और क्या होगा इस देश का ?आज के बच्चे स्कूल जाते है स्वाधीनता दिवस के दिन मैंने जानकारी ली बेटा आज स्कूल में क्या है तो जवाब आया की आज स्कूल में मिठाई बंटेगी और हम गाना गायेंगे .मैंने कहा क्यो तो बोले क्योंकि आज छुट्टी है। मतलब निकल आया आज के अध्यापक जो है वो तो है ही लेकिन आज के अभिभावक के पास इतना भी समय नही है या वो इतनी जरुरत नही समझते की अपने बेटी -बेटो को आज़ादी के मायने बता सके . या यही बता दे 15 अगस्त को मिठाई क्यों मिलती है । देश विकास कर रहा है गरीब गरीब होता जा रहा है और अमीर और होता जा रहा है लेकिन सब शांत है क्या यही है आज़ादी ?.........